[శ్రీ బండారు ప్రసాదమూర్తి రచించిన ‘అనంత యాత్ర’ అనే కవితని హిందీలో ‘सुहाना सफर’ అనే పేరుతో అందిస్తున్నారు డా. టి. సి. వసంత]
[dropcap]हाँ, [/dropcap]हमेषा का यही सफर है
परंतु इस बार, रेल मे बैठे तो लग रहा है
दूसरे ग्रह मे, बैठा हूँ!
हॉ, सब ओर इन्सान जैसे इन्सान ही हैं!
शब्द तथा मन के संगं कर्ने हेतु
एक जगह मिले जैसे
इन्सान से हुबहु इन्सान का परिचय हुवे जैसे
बस जहां देखो वहां
कोलाहल ही कोलाहल है
देहोंको बेर्थों पर डाल कर
लगेजोंको बेर्तोंके नेचे ढकेल कर
चेप्पलोंको बाजुमे सर्काकर
केवल आत्मयें, अनंतकाल से भूक से
तडप रहे जैसे, बतियाने लगिं
दरारोंसे ग्रस्त
जीवन यहा पर लतावोंकी तरह
एक पल मे लिपट गये
हा कभी भी इत्ना इत्विनान से देखा नहीं
राज्यका नामो निषान नही
संविधान का अस्तित्व नही
आंखोंसे कुल-गोत्र नही झर रहे
शब्दोंमे धर्म का नामो निषान नही
नींद और जाग के बीच
खिल गये प्रकाश मे
भग्वान को भी अप्ने प्रति ध्यान नही
सभी मे एक ही ज्ञान है
थोडी देर का सफर जारी है
कौन चढ रहा है
कौन उतर रहा है
तुम्हारा स्टेशन कहां पर है रे? हे बुल बुल
कोयी अंध गायक, जीवन तत्व का गीत गा रहा है
सम्झौता कर्के बैठे इन्सानोंके बीच के
समता भाव को
इंधन मे बदल कर
गाडी भावविभोर होकर जारही है
किस्के मन मे कौन्से पर्बत
अंकुरित होरहॅ है, पता नहीं
बाहरी तौर पर समुंदर जैसे सर हिला रहे है
साथ मे लाये भोजन के साथ साथ
कश्ट सुखोंको उतार चढावों को
एक दूस्रे से बांट रहे है
पता नही किस्के बच्चे कौन है
बढोंकी आंखोंकी अक्वेरियं मे
शिशु मच्लियां बन रहे है
टीसी आगया द्वेश के लिये रिजर्वेशन नही है, कहा
प्रेम के लिये बर्थ कन्फर्म है, कहा
भारतीय रेल गाडी मे वह
मानवीय आत्मा बन गया
तभी अंदर आने वालोंने
हस्ते हुवे ‘हलो’ कहा
तभी बाहर जानेवालोने
हस्ते हुवे ‘बय बय’ कहा
मिल्कर बैठे मुसाफिर
भूत तथा भविश्य से
संबंध जिस्का नही
उस वर्त्मान से ही अप्ने आप जोड लिया
जनम मरण का हिसाब- किताब नही
आत्म बंधु बन ने के लिये आधे घंटे रेल मे सफर काफी है
नो अथारिटी , नो फार्मालिटी , ना जमेतो
थोडा सा झग्डा
जमे तो, एक के कंथों पर दूस्रे एक को सहारा
एक स्टेशन, आने के लिये स्वागत कर्ता है
दूस्रा स्टेशन , फिर फिर आने के लिये कहता है
अल्विदा कहता है
मिले जब हसीं
अल्विदा होते समय आसूं
दो स्टेशनोंके बीच मिलन-आत्मीयता
अल्विदा-सायोनारा!!
हां यही जीवन है समझ कर रेल के साथ मैने भी सीटी बजायी
कई बार रेल मे सफर किया, परंतु ,
इस बार नया एहेसास हुवा
काल से बिच्छायी गयी पट्रियों पर
एक देह से दूस्रे देह के साथ
गाठ बांध कर आगे खींच्नाही
रेल का सफर है
आत्मायें उतर्ती रहतीं…तथा चड्ती रहतीं
देहों मे पल पल मे, आने जाने वाले
पलोंमे लेन देन का ज्ञान ही
इंजन है
इसीलिये जीवन मे अप्ना सफर
इधर उधर भटक जायेगा तो
मेरा कहना मानो
रेल मे सफर करो
यही सुहाना सफर है
आनंद यात्रा है..
तेलुगु: श्री बंडारू प्रसाद मूर्ती
हिंदी: डॉक्टर टि.सि. वसंता